भीतर से वार्तालाप?

सोचता हूं कि भीतर से प्रेम करना और उसके ही संग रहना आखिर होता क्या है?

पर अब में समझ पा रहा हु की,

इंसान इसीलिए इंसान है कि वह अपनी पांचो इन्द्रियों का उपयोग करते रहता है। और सबसे जरूरी बात यह है की किसी न किसी तरीके से वह वार्तालाप में रहना चाहता है जिससे वह संतुष्ट और सर्जन करता रहे।

मैन कल ही स्वामी सच्चिदानंद जी का एक व्याख्यान सुना और उन्होंने एक सुंदर बात कही थी,

की सर्जन शक्ति किसीके दबाव से या किसीके पढ़ाए खिल नहीं सकती है। सर्जन शक्ति जो कालिदास, मीरा, तुलसीदास, ग़ालिब, शेक्सपियर और अन्य महान व्यक्तिओ की थी वह तो कैसे भी करके पाई ही नहीं जा सकती है क्योंकि सर्जन शक्ति ईश्वरीय देन होती है और वह सिर्फ आपके भीतर से ही स्फुरित हो सकती है।

इसीलिए इश्वरकी दी हुई असीम संभावनाओको समझने के लिए ईश्वर के समीप जाना जरूरी हो जाता है जिसे आध्यात्मिकता कहते है जो आपके अपने भीतर से मिलवाने की एक कोशिश करता है।

प्रेम, ओर चोंट, ही ईश्वर के समीप ले जा सकती है।

#कमलम

ટિપ્પણીઓ

વાંચકોને ખુબ જ ગમેલી પોસ્ટો

શાહબુદ્ધિન રાઠોડ માર્ગ

શિક્ષણ અને ખાનગીકરણ

દેહવ્યાપાર અને મજબુર સ્ત્રીઓ

સમજોતા એક્સપ્રેસ

ગુજરાતી ફિલ્મ ઇન્ડસ્ટ્રીમાં એમના તારલાઓની ખોટ

પાક સોબાના

સામ, દામ, દંડ અને ભેદ

ભારત, એક મહાન દેશ (?)

દુધાળા પશુઓ અને ભારત

પ્રાચિન હિંદુત્વ થી હાલનો હિંદુવાદ