मजबूरियत तो मेरी जान ले गया
उसे जब कभी फुर्सत मिलती तो अपने मनमंदिर में जाकर बैठ जाता
वो शान से अपने जज्बातों और मजबूरियों को बांटता और देखते रहेता
एक शाम मनमंदिर का पुजारी आया और वो बोला...
"चल ला अब मुझे भी कुछ दे दे"
उसने थाली में देखा और बोला...
"अब तुझे क्या दू ? बचा ही क्या है मेरे पास !!
एक निवाला था जो जज्बात ले गया
और साला मजबूरियत तो मेरी जान ले गया....."
- कमल
वो शान से अपने जज्बातों और मजबूरियों को बांटता और देखते रहेता
एक शाम मनमंदिर का पुजारी आया और वो बोला...
"चल ला अब मुझे भी कुछ दे दे"
उसने थाली में देखा और बोला...
"अब तुझे क्या दू ? बचा ही क्या है मेरे पास !!
एक निवाला था जो जज्बात ले गया
और साला मजबूरियत तो मेरी जान ले गया....."
- कमल
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